What is Transformers how it's work how many types of transformers

ट्रांसफार्मर (Transformers)

 ट्रांसफार्मर वह सिथिर उपकरण है जोकि अल्टरनेटिंग विद्युत ऊर्जा को कम वोल्टेज या अधिक वोल्टेज से कम वोल्टेज में दी गई फ्रिकवेंसी पर काम लाते हैं वह जब वोल्टेज कम वह ज्यादा की जाती है जो फ्रीक्वेंसी में कोई परिवर्तन नहीं होता है।

ट्रांसफार्मर की बनावट ( Construction Of Transformers)

ट्रांसफार्मर के मुख्य 2 भाग होते हैं
  1. कोर (Core)
  2. वाइंडिंग (Winding)
  •   कोर (Core)                                                        यह सिलिकॉन स्टील लेमिनेशन की बनाई जाती है जिससे एडी हिस्टेरिस्स लास  ट्रांसफार्मर में कम होता है। प्रत्येक कोर को लेमिनेशन वायरनिस के द्वारा दोनों तरफ इंसुलेट किया जाता है। लेमिनेशन की मोटाई 0.35 एम.एम. से 0.5 तक होती है। कोर एक वह मैग्नेटिक फ्लक्स को आसान रास्ता प्रदान करना है। कोर के जिस भाग पर वाइंडिंग की जाती है उसे लिंब कहते हैं। 
  • वाइंडिंग (Winding)                             कोर पर वाइंडिंग की जाती है। इसके लिए इनमेलेड प्रयोग की जाती है जो वाइंडिंग सप्लाई के साथ जोड़ी जाती है उसे प्राइमरी वाइंडिंग तथा जिस पर जोड़ा जाता है या सप्लाई ली जाती है उसे सेकेंडरी वाइंडिंग कहते हैं बनावट के आधार पर यहां दो प्रकार की होती है                          
  1. सिलैंडरिकल टाइप (Cylindrical Type)              वह बाइंडिंग जिसकी लंबाई लिंब की लंबाई के समान होती हैं। उसे सिलैंडरिकल वाइंडिंग कहते हैं
  2. सेंडविच टाइप (Sandwich Type)          इसमें वाइंडिंग को एक के बाद एक सैंडविच की तरह वाइंड करते हैं इस प्रकार की वाइंडिंग शैल टाइप ट्रांसफार्मर में इस्तेमाल की जाती है।                                                                  
कार्य सिद्धांत (Working Principle)              ट्रांसफार्मर म्यूच्यूअल इंडक्शन के सिद्धांत पर काम करता है ट्रांसफार्मर में एक को होती है जो कि नरम लोहे की चादरों की बनी होती है जिससे वार्निस द्वारा इंसुलेट किया जाता है। कोर के ऊपर दो अलग प्राइमरी तथा सेकेंडरी वाइंडिंग होती है। दोनों वाइंडिंग आपस में एक दूसरे से इंसुलेटेड होती है जब एक वाइंडिंग को ए.सी. सप्लाई के साथ जोड़ा जाता है तो इसमें ए.सी. करंट के बहाव होने से चुंबकीय क्षेत्र बनता है। जोकि दूसरी वाइंडिंग के साथ लिंक करता है क्योंकि दोनों वाइंडिंग आपस में मैग्नेटिक मिले हुए हैं और इस तरह दूसरी वाइंडिंग में पैदा होने वाली वोल्टेज अल्टरनेटिंग होती है यहां पैदा हुई ई.एम.ऍफ़. दूसरी वाइंडिंग में टर्न की संख्या पर निर्भर करती है।

ट्रांसफर ट्रांसफार्मर के प्रकार (Types Of Transformers) कोर की बनावट के अनुसार ट्रांसफर ट्रांसफार्मर तीन प्रकार के होते हैं। 

  1. कोर टाइप ट्रांसफॉर्मर (Core Type Transformer)
  2. शैल टाइप ट्रांसफॉर्मर (Shell Type Transformer)
  3. बैटरी टाइप (Berry Type Transformers)

  • कोर टाइप ट्रांसफॉर्मर (core type transformer) इसमें एल प्रकार की कोर उपयोग की जाती है जिससे कोर आयताकार आकार में आ जाति है यह कोर सिलिकॉन स्टील धातु की बनाई जाती है। इसकी चार लिंब होती है तथा प्रत्येक लिंब का क्षेत्रफल एक दूसरे के बराबर होता है प्राइमरी और सेकेंडरी वाइंडिंग किन्हीं दो विपरीत लिंब के ऊपर की जाती है चुंबकीय रेखाओं के लिए एक ही रास्ता होता है इस प्रकार का ट्रांसफार्मर कम पावर के लिए बनाया जाता है। 

  • Core Type Transformer
  • शैल टाइप ट्रांसफॉर्मर Shell Type Transformer यह ट्रांसफार्मर भी पतली पतली पत्तियों के मिलने से बनता है इसकी तीन लिंब होती है तथा बीच वाली लिंब का एरिया बाहरी लिंब वाली बाहरी लिंब वाली लिंग के ऊपर क्रमवार वाइंडिंग की जाती है इस प्रकार के ट्रांसफार्मर में E और I आकार की पत्तियां प्रयोग में लाई जाती है तथा चुंबकीय रेखाओं के लिए दो मार्ग होते हैं इस प्रकार का ट्रांसफार्मर कम वोल्टेज व अधिक पावर के लिए बनाया जाता है। 
    Shell Type Transformer.
  • बैरी टाइप ट्रांसफॉर्मर (Berry Type Transformer) इस प्रकार के ट्रांसफार्मर का वितरित कोर टाइप ट्रांसफॉर्मर भी कहते हैं यह ट्रांसफार्मर छोटा होता है लेकिन दूसरे दोनों प्रकार के ट्रांसफार्मर के गुण इसमें पाए जाते हैं चुंबकीय कोर आयताकार होती है और क्वाइलों के चारों और लपेटी जाती है। तार को कम लेने के लिए बाहर कबायलो की अपेक्षा कोर की बीच दोनों लिंब क्रॉस सेक्शन कुछ कम बनाया जाता है। तथा इसमें कई चुंबकीय रास्ते बन जाते हैं इसीलिए इसे टाइप ट्रांसफॉर्मर कहते हैं इस प्रकार के ट्रांसफार्मर कम प्रयोग में लाए जाते हैं। 
  • वोल्टेज के अनुसार ट्रांसफॉर्मर दो प्रकार के होते हैं
  1. स्टैप अप ट्रांसफॉर्मर (Step Up Transformer) वह ट्रांसफॉर्मर जो कम वोल्टेज को अधिक वोल्टेज में बदल देता है उसे स्टेप अप ट्रांसफॉर्मर कहते हैं जैसे 440/11000 वोल्ट। 
  2. स्टैप डाउन ट्रांसफॉर्मर (Step Down Transformer) वह ट्रांसफॉर्मर जो अधिक वोल्टेज को कम वोल्टेज में बदल देता है उसे स्टेप डाउन ट्रांसफॉर्मर कहते हैं जैसे 440/220 वोल्ट। 

फेस के अनुसार ट्रांसफार्मर तीन प्रकार के होते हैं

  • सिंगल फेस (Single Phase) इसमें दो वाइंडिंग होती है एक प्राइमरी और दूसरी सेकेंडरी वाइंडिंग।
  •  पोली फेस (Poly Face) इसमें अंतर्गत निम्नलिखित प्रकार के ट्रांसफार्मर आते हैं। 
  1. टू फेस ट्रांसफॉर्मर (Two Phase Transformer)
  2. थ्री फेस ट्रांसफॉर्मर (Three Phase Transformer)
  3. छ: फेस ट्रांसफॉर्मर (Six Phase Transformer)
इसमें से अधिकतर सिंगल फेस व थ्री फेस ट्रांसफॉर्मर ही उपयोग किए जाते हैं। 
ट्रांसफार्मर की कोर की धातु तथा आकार ( Metal And Type Of Transformer Core)                        ट्रांसफार्मर की कोर ऐसी धातु की बनाई जाती है जिसमें एडी करंट और हिस्टेरिसिस लोस कम जैसे सिलिकॉन स्टील की पतली पतली पत्तियों प्रत्येक पति को दोनों तरफ से के द्वारा इंसुलेटेड कर दिया जाता है। इन पत्तियों की मोटाई 0.35 एम.एम. 0.5 एमएम तक होती                                                          विभिन्न प्रकार के ट्रांसफार्मर के लिए कोर निम्नलिखित आकार की बनाई जाती है। 

ट्रांसफार्मर के लाभ (Advantage Of Transformer)                                                                             ट्रांसफार्मर के निम्नलिखित लाभ है

  1. यह स्थिर यंत्र होने के कारण इसमें कोई आवाज नहीं होती है। 
  2. इसकी ज्यादा देखभाल की आवश्यकता नहीं होती इसीलिए इसको लगाने से बिजली सस्ती पड़ती है। 
  3. ट्रांसफार्मर को बहुत अधिक वोल्टेज पर बनाने के लिए इंसुलेशन करना आसान होता है। 
  4. इसकी लाइफ अधिक होती है। 
  5. किसी भी जगह इसको लगाए लगा सकते हैं। 
  6. इसके उपयोग के कारण ट्रांसमिशन और डिस्ट्रीब्यूशन सस्ती पड़ती है तथा एलुमिनियम या कॉपर की बचत हो जाती है। 
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